रचयिता - कविता - मयंक द्विवेदी

रचयिता - कविता - मयंक द्विवेदी | Hindi Kavita - Rachayitaa - Mayank Dwivedi | रचयिता पर कविता
पटल दृष्टि चाँद तारों जिस प्रभु को पढ़ लिया,
सृष्टि के रचयिता ने कण-कण से जग गढ़ लिया।
प्रचण्ड भास्कर किरन है तो चन्द्र शीतल है बना,
कही ऊँची चोटियाँ तो गहरा सागर है घना।
धारा जल की अभिषेक करती, धरा को है छुआ,
देख कर अंचभित हृदय प्रफुल्लित उल्लासित हुआ।
निहारता है नीहार को तो हर तरफ़ है धुआँ,
गगन नीले रंग रंगा है मेघ रंग है गेहुआँ।
नव प्रभात की नवल किरणों उर्जित यह समा,
चहचहाते अतिव सुन्दर खगों का ये क़ाफ़िला।
लहलहाते खेत है और हरी-भरी है ये धरा,
साँझ की साँझी में हलधर लौट के है घर चला।
तिमिर में आलोक हेतु जुगनू मशाले ले उड़ा,
रात के चारो प्रहर में चाँद चाँदनी संग खिला।
प्रकृति के हर रूप में रूप तेरा है दिखा,
मिट्टी के साँचों में गढ़ के प्राण तन में है फूँका।
विसम्य भरे ये दो नयन रोम-रोम पुकारते,
धन्य है ये रूप जिसको कोटि-कोटि निहारते।


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