जिया ही नहीं - कविता - प्रवीन 'पथिक'

जिया ही नहीं - कविता - प्रवीन 'पथिक' | Hindi Kavita - Jiyaa Hi Nahin - Praveen Pathik. Poem On Life | जीवन पर कविता
ज़िंदगी में बहुत कुछ मिल सकता था, 
लिया ही नहीं!
चाहता था खुल कर जीऊँ, पर जिया ही नहीं।
घुट-घुट कर जीता रहा, इच्छाओं को दबा के।
कोई मिला ही नहीं, जो दो बोल बोले;
प्यार से आ के।
उलझने आती रही, पद डगमगाते रहे।
कोई मिलता रहा, कोई जाते रहे।
अजीब सी बेचैनी सताती रही,
चाहता दूर भागना, वो आती रही।
एक आशंका; एक तड़प; एक बेचैनी,
बिन इसके कोई घूँट पीया ही नहीं।
चाहता था खुल कर जीऊँ,
पर, कभी जिया ही नहीं।


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos