एक सवाल - कविता - निवेदिता

छोटा सा है, एक ख़्याल,
उफान मचाता एक सवाल।
याद है रखना या भूल है जाना,
पढ़े जा चुके पन्नों का फ़साना?
लोग कहे वो बीता पल था, 
दर्दनाक मन का कलेश था।
भूल भाल के आगे बढ़ जा,
नया पृष्ठ ले, और तर जा।
अब सवाल फिर है आया,
नए पृष्ठ का लेखक कौन?
जवाब में मिलता सबका मौन।
नए सफ़र पर नया हो साथी,
हाथ थाम बन फिर से बाती,
रोशन कर ले मन का धाम,
सौप किसी को अपनी लगाम।
लौट आया फिर, वही सवाल,
नया सफ़र क्यों राह वही हो,
नया दिया, क्यों बाती हम ही हों,
कैसे होगा रोशन धाम,
जले हम ही, और भोगे आवाम?
स्वार्थ में अपने चूर हुई है,
ख़ुद के दुख में क्रूर हुई है,
नहीं जनक के दुख का भान,
ये कैसी सुता और कैसा मान।
ख़्याल वही मेरे मन में आया,
फिर मुझमें तूफ़ान समाया।
जब पृष्ठ पुराने होंगे याद,
ध्यान में मेरे होंगे पाठ,
जलन बाती की होगी साथ,
दीप होने की होगी आग।
स्वार्थ ही मेरा साहस होगा,
दुख सारथी और नायक होगा।
देख सफल जीवन युद्ध में,
सुता जनक को नाज़ भी होगा।


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