प्रेम का प्रतिदान कर दो - गीत - सुशील शर्मा

प्रेम का प्रतिदान कर दो - गीत - सुशील शर्मा | Hindi Prem Geet - Prem Ka Pratidaan Kar Do - Sushil Sharma
हृदय का तुम मान कर दो
प्रेम का प्रतिदान कर दो।

प्राण तुम हो, साँस तुम हो
टूटे हृदय की आस तुम हो
हार के अंतिम क्षणों में
जीत का आभास तुम हो।

मरुथलों सी ज़िंदगी में
प्रेम का जल दान कर दो।

हो तुम्हीं अंतिम किनारा
टूटते मन का सहारा
छोड़ दोगे साथ गर तुम
कौन होगा फिर हमारा।

ले निशाना इस हृदय का
प्रेम का संधान कर दो।

जीत भी तुम हार भी तुम
नेह की आधार भी तुम
प्रेम की बहती नदीं की
मृदुल मंजुल धार भी तुम।

छोड़ कर सब वर्जनाएँ
नेह का अनुदान कर दो।

दीप मन में जल रहा है
प्रेम मन में पल रहा है
स्वप्न रीते वर्ष बीते
विरह तेरा खल रहा है।

मत कहो कि कौन हूँ मैं
प्रेम से पहचान कर दो।

नित्य आँखों में बसाए
दूर तुम को कर न पाए
बहुत त्यागा बहुत भागा
लौट कर तुम पर ही आए।

तुम हमारी हम तुम्हारे
बस यही एलान कर दो।

साध्य मैं तुम साध मेरी
कृष्ण मैं तुम राध मेरी
तन अलग मन साथ तेरे
मैं तनिक तुम आबाध मेरी।

विरह की इस जिजीविषा को
मिलन का वरदान कर दो।

न मिली तुम साँस टूटे
तुम बँधी अब मन के खूंटे
चाहे जितनी दूर हो तुम
साथ तेरा अब न छूटे।

आख़री इच्छा हमारी
मन का कन्यादान कर दो।

विभा सी पावन पुनीता
मृदुल मंजुल मन विनीता
रश्मि सी ज्योतिर्मयी हो
हॄदय तुमने मेरा जीता।

हॄदय का शृंगार बन कर
मन को ज्योतिर्वान कर दो।

रश्मिरथ पर कर सवारी
प्रेम की लेकर उधारी
चल पड़े हैं राह तेरी
मन में ले यादें तुम्हारी।

बस यही चाहत है मन में
स्वयं का अवदान कर दो।

सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)

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