प्रेम की भाषा बोल रही। 2
नज़रों ने नज़रों में देखा
लहरों पे लहरें डोल रही।
प्रेम की भाषा बोल रही। 2
ना जाने हम उसका नाम
ना जाने घर, ठौर, पैग़ाम
पलकों से मिलते-मिलते
भूल गए कल का अंजाम।
फिर से कब नैना देखेंगे
तन्हाई हमकों तौल रही।
प्रेम की भाषा बोल रही। 2
उसके दो नैना गहरे हैं
सागर से मुझपे ठहरे हैं
सूखा सा मासूम रहा मैं
सावन की उसमें लहरें है
बेचैनी को चैन मिला तो
अनजानी-सी हिलोर रही।
प्रेम की भाषा बोल रही। 2
दोनों ही हमराह सफ़र के
साथी केवल एक डगर के
कितना होगा साथ न जाने
हम हैं पँछी यार अधर के।
अपना-अपना घर दोनों का
हद, साँसों की हमजोल रही
प्रेम की भाषा बोल रही। 2