तुम कौन हो? - कविता - सुनिल शायराना

तुम कौन हो? - कविता - सुनिल शायराना | Hindi Kavita - Tum Kaun Ho - Sunil Shayrana | आत्म पर कविता
एक अदृश्य एवं अलौकिक शक्ति,
जो कहीं नहीं है, मगर है,
जिसने समस्त ब्रह्मांड का सृजन किया,
असंख्य जीवों का निर्माण किया,
जो अनादि काल से अस्तित्व में है,
आज भी है, और कल भी रहेगा,
जिसमें समस्त चराचर निहित है,
वह आदिपुरुष, परमपिता परमेश्वर है,
मगर ज़रा सोचो!
तुम कौन हो?
और तेरा अस्तित्व क्या है?

एक बार आसमान की तरफ़ देखो,
वह सूरज है, जो नियत है,
अंधेरे से दूर उजाले में ले जाता है,
चाँद है, तारे हैं, और असंख्य पिंड है,
जिन्हें दीर्घकाल से देखते आ रहे हैं,
जो अनवरत आसमान में चमकते रहते हैं,
और ब्रह्मांड को संतुलित रखते हैं,
जिन्हें सारा संसार जानता है,
मगर ज़रा सोचो!
तुम कौन हो?
और तुम्हारा अस्तित्व क्या है?

पृथ्वी को देखो जो जीवन का आधार है,
समस्त जीवों का पालन करती है,
नदियाँ, पर्वत, पठार, समुद्र, पेड़-पौधे, मनुष्य, पशु-पक्षी एवं छोटे-छोटे जीव,
सबको अपनी आँचल में समेटी है,
सबकी अपनी अलग पहचान है,
मगर ज़रा सोचो!
तुम कौन हो?
और तुम्हारा अस्तित्व क्या है?

ज़रा सोचो उन महान आत्माओं के बारे में,
जो चले गए हैं दुनिया से फिर भी ज़िंदा है,
अनगिनत लोगों के दिलों और दुआओं में,
जो अमिट छाप छोड़ गए हैं इस जहाँ में,
जिन्होंने ख़ुद के बलबूते इतिहास लिख डाला,
जिन्हें आज भी दुनिया याद करती है,
और आने वाली पीढ़ी उनका सम्मान करती रहेगी,
वह भी मनुष्य थे बिल्कुल तुम्हारी तरह,
लेकिन अमर है आज भी ईश्वर की तरह,
मगर ज़रा सोचो!
तुम कौन हो?
और तुम्हारा अस्तित्व क्या है?

सुनिल शायराना - गायघाट, बक्सर (बिहार)

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