गुल्ली डंडा - गीत - उमेश यादव

गुल्ली डंडा - गीत - उमेश यादव | Geet - Gulli Danda - Umesh Yadav. गिल्ली डंडा पर गीत
मचल रहा मन बहुत आज हम चलें गाँव की ओर। 
उठा हाथ में गुल्ली डंडा, ख़ूब मचाएँ शोर॥ 

कितना मनभावन होता है, बच्चों के संग खेलें। 
लकड़ी के गुल्ली डंडा को, निज हाथों में लेलें॥ 
बच्चों के संग निकलें बाहर, हो जाए जब भोर। 
उठा हाथ में गुल्ली डंडा, ख़ूब मचाएँ शोर॥ 

डंडे से गड्ढे हम खोदें, गुल्ली वहाँ बिठाएँ। 
गुल्ली को उछाल हवा में, डंडे से मार लगाएँ॥ 
गुल्ली उड़े हवा में जाए जहाँ क्षेत्र का छोर। 
उठा हाथ में गुल्ली डंडा, ख़ूब मचाएँ शोर॥ 

दुर जहाँ तक जाए गुल्ली, उसको नापा जाता। 
हवा में ही यदि पकड़ा जाए, खिलाड़ी बाहर जाता॥ 
छुट जाए यदि हाथ से गिल्ली, मचे शोर बड़ी ज़ोर। 
उठा हाथ में गुल्ली डंडा, ख़ूब मचाएँ शोर॥ 

कौन है जीता कौन है हारा, हल्ला है मच जाता। 
बात-बात में झगड़ा होता, सुलह शीघ्र हो जाता॥ 
पदने पदाने का मचता तब, आपस में घनघोर। 
उठा हाथ में गुल्ली डंडा, ख़ूब मचाएँ शोर॥ 

बिन पैसे का खेल है प्यारा, कोई बही ना खाता। 
बच्चों सा उर अपना भी तो, है पावन हो जाता॥ 
ललक जगी खेलें बच्चों संग, मन बन गया किशोर। 
उठा हाथ में गुल्ली डंडा, ख़ूब मचाएँ शोर॥ 

उमेश यादव - शांतिकुंज, हरिद्वार (उत्तराखंड)

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