गिरेंद्र सिंह भदौरिया 'प्राण' - इन्दौर (मध्य प्रदेश)
ख़ुश्क तबियत हरी नहीं मिलती - ग़ज़ल - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
सोमवार, अक्टूबर 09, 2023
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती : 212 212 1222
ख़ुश्क तबियत हरी नहीं मिलती,
और फिर रसभरी नहीं मिलती।
लोग कहते कि चाँदनी देखो,
चाँदनी साँवरी नहीं मिलती।
नाज़ नख़रे हज़ार होते हैं,
रूपसी बावरी नहीं मिलती।
नाज़नीनों को भटकते देखा,
आप सी सहचरी नहीं मिलती।
हूर तक को उतार लेता पर,
आप जैसी परी नहीं मिलती।
इश्क़ नमकीन हुस्न मीठा है,
प्रीति भी चरपरी नहीं मिलती।
'प्राण' की प्यास आख़िरी होगी,
ज़िन्दगी दूसरी नहीं मिलती।
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