हम भारत के सब वासी हैं,
सेना अपनी हमको प्यारी।
अदम्य शौर्य की प्रतिमूर्ति,
इससे ही है शान हमारी।
इस सेना के कारण ही हम,
रातों को सुख से सोते हैं।
जब हम तापें गर्म अंगीठी,
हिम शिखरों पर यह होते हैं।
सीमा पर यह सीना तनकर,
दुश्मन का सीना छलते है।
सर्दी-गर्मी दिन रातों में,
यह वीर हमारे पलते है।
तपती बालू पर भी देखो,
यह सीना तनकर चलते है।
देश हमारा सुरक्षित करके,
यह सूर्य बनकर जलते हैं।
भारत माँ के बनकर प्रहरी,
बेटे का धर्म निभाते हैं।
प्राणों को करतल पे रखकर,
भारत का मान बढ़ाते हैं।
गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)