मेरी रख लो लाज मुरारी,
मैं चरणों की दासी हूँ थारी।
पुष्प फलम् हैं न नैवेद्य,
किस विध पूजा करूँ मैं थारी।
समा लो मुझको तुझमें हे श्याम,
जैसे मीरा है तुझमें समा री।
दूर करो दुःख दर्द मेरे गोविंदा,
मैं हूँ बहुत घणी दुखियारी।
मैं फँस गई हूँ मझधार में,
मेरी नैया पार उतारो गिरधारी।
तुम मुरली बजाओ नंद लाला,
'योगी' आरती उतारे है थारी।
अशोक योगी, नारनौल (हरियाणा)