जो शब्दों में ढले,
बस वही तो पीड़ा नहीं है।
जो शब्दों में बहे,
बस वही तो मीरा नहीं है।
थोड़े बालों की उलझन,
थोड़े शब्दों की सुलझन,
थोड़ा औरों का अंजन।
जो अपनो से बहे,
वो आँसू तो क्रीड़ा नहीं है।
मौन से भरा स्वर,
सच से ज़रा डर,
कितना छोटा बड़ा नगर।
जो समझे नहीं कहे,
उपेक्षा में कोई व्रीड़ा नहीं है।
भीतर का द्वंद भरकर,
बस आँखों में जीकर,
जीवित ही मरकर।
जो समय नष्ट हुआ,
उसकी दृष्टि में हीरा नहीं है।
हेमन्त कुमार शर्मा - कोना, नानकपुर (हरियाणा)