गुरुजी को नमन - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
मंगलवार, सितंबर 05, 2023
मनुज श्रेष्ठ मुझमें बसाने की ख़ातिर
ख़ुद को दिए सा जलाते है वो
हम सबको गुरुतर बनाने की ख़ातिर
नई राहें हर पल दिखाते है जो
माटी से मूरत बनाते हमे
करूँ ऐसे गुरुजी को नमन
शत बार नमन लख बार नमन
हर बार नमन बारंबार नमन।
अँधियारा घना था जीवन पथ में
ज्ञान दीए से उजियारा करते
हर मुश्किल घड़ी में आगे आकर
बेबस मन का सहारा बनते
सहारा बनते हल रखते सदा
रहे वत्सल सदा जिनके नयन
करूँ ऐसे गुरुजी को नमन
शत बार नमन लख बार नमन
हर बार नमन बारंबार नमन।
थम जाए क़दम मेरे जो थककर
नवप्राण फूँक जीवन दे जाते
हर मुश्किल घड़ी की आशा बनकर
मरुथल में भी जल बरसाते
बरसा जाते अमिय रस सदा
सुधाकर सा हृदय है नरम
करूँ ऐसे गुरुजी को नमन
शत बार नमन लख बार नमन
हर बार नमन बारंबार नमन।
गुरु बिन ये दुनियाँ कैसी होती
ये सोच के हम डर जाते है
भला कैसे आता हमें जीना मरना
कैसे नगर ये बसाते हम
कैसे होता अंबर में उड़ना
जलधि पार कब करते हम
करूँ ऐसे गुरुजी को नमन
शत बार नमन लख बार नमन
हर बार नमन बारंबार नमन।
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