शिक्षक सिर्फ़ शिक्षक नहीं होते
वो होते हैं जिन्न
वे एक साथ कई भूमिकाएँ निभाते हैं।
जब खिलखिलाते हैं
तब वे होते हैं मित्र
डाँटते हैं तो पिता जैसे
लाड़ करते हैं माँ जैसे
कक्षा में ज्ञान देते समय
वो बन जाते हैं ईश्वर।
वो स्कूल पहुँचते हैं हमसे बहुत पहले
ताकि कर सकें हमें ज्ञान देने की तैयारी
फिर लौटते हैं हमसे बहुत बाद
शाम के झूलपटे में
उन्हें भी लाना होता घर का सामान
सब्जी तेल अनाज
उन्हें भी करनी होती है
परिवार की परवरिश
उनके पास बच्चे हैं,
उनकी पढ़ाई की चिंता है
उनके प्रश्नों और उनकी ज़रूरतों को
करना है पूरा।
उन्हें करनी है देखभाल
पति की सास ससुर माता पिता की
उन्हें निपटाने हैं सामाजिक सरोकार
फिर स्कूल में आकर
पढ़ाई के साथ
चुनाव, मध्यान्ह भोजन
सर्वे, प्रशिक्षण, साफ़-सफ़ाई
सांस्कृतिक कार्यक्रम
फिर निकालना है
माननीयों की रैली
देना है अधिकारीयों के पत्रों के जबाब।
ज़रा सी चूक में खाना है अधिकारीयों की डाँट
पूरी करनी हैं जनप्रतिनिधियों की
ग़ैर ज़रूरी माँगें
उन्हें पहनना हैं सीधे सरल कपड़े
तड़क भड़क से दूर
बिना शिकायत के
बिना उम्मीदों के
निरंतर चलना है कर्तव्यपथ पर।
जलते रहना है निरंतर
देना है ज्ञान का प्रकाश
जिससे आलोकित हो
भारत का भविष्य।
शिक्षक होना
कहाँ आसान है?
सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)