अरकान : फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती : 212 1222 212 1222
उसने जब-जब कोई मुझसे सवाल पूछा है,
मैंने तब-तब पलट के उसका हाल पूछा है।
युग बदल देने की बातें तो बड़ी हैं शायद,
कैसे गुज़रेगा ग़रीबों का साल, पूछा है।
अपने हाथों में कटोरा लिए इस धरती ने,
कब से मिलने लगेगी सबको दाल, पूछा है।
इक शिकारी को परिंदों की मिली है चिट्ठी,
कब तलक लेके वो आएगा जाल, पूछा है।
ये हवा अब भी हिलाती है पत्तियों को मगर,
कब ये ताक़त से हिलाएगी डाल, पूछा है।
कब हक़ीक़त में बदल पाएँगे सपने अपने,
कब से धरती पे होगा ये कमाल, पूछा है।
उनके शहरों में तो होते हैं हमेशा बलवे,
अपने गाँवों में होगा कब बवाल, पूछा है।