ऐ युवा देश के जागो! - कविता - रूशदा नाज़

ऐ युवा देश के जागो!
तुम कब तक सोते रहोगे?
माशरे में हो रहा क्या?
कब तक अनभिज्ञ रहोगे?
तुझे कोई ख़बर नहीं, कुछ भी असर नहीं,
तू डूबा फ़ोन, मोबाइल में;
घण्टों ज़ाया करते अपना,
बिखर न जाए देश का सपना।
ऐ युवा देश के जागो!
नज़रें उठा कर देख ज़रा तू,
ऊपर नीला आसमाँ,
तू पंछी सा उड़ान भर।
कब तक सोता रहेगा?
ऐ युवा देश के जागो!
तुम सूर्य के प्रकाश हो,
तुम नवल फूल हो खिलते हुए,
तुम प्रेम हो, तुम्हीं दया हो,
तुम वीर हो, और तुम्हीं देश के रीढ़ हो।
ऐ युवा देश के जागो!
मिलकर नव निर्माण करेगें,
तुझसे सौहार्द बढ़ेगा
तू वतन की जान है, तू ही वतन की शान है,
तू नवप्रभात की किरण हैं, पथ से पथभ्रष्ट न होना,
विघ्न बाधाओं को पारकर,
तू सत्य की पहचान कर।
जय-पराजय से न डर तू,
तुझे निडर बनना है,
ऐ युवा तुझे विवेकानंद के आदर्शों पर चलना है।
ऐ युवा देश के जागो!
जीवन पथ पर विकसित होकर समृद्ध हो जाना है,
कुछ करने की ललक में अपना सामर्थ्य झोंक देना है।
तू निराश क्यूँ दिखता है?
तू हताश क्यूँ रहता है?
तुम हर्षोल्लास से परिपूर्ण हो,
तुम आनन्द हो।
ऐ युवा देश के जागो!
कहती है 'रूशदा',
हर एक युवा भविष्य का चमकता सितारा है,
हर एक युवा पर्वत से निकलती सागर की धारा है,
हर एक युवा में महापुरुषों सी धधकती ज्वाला है।
ऐ युवा देश के जागो!
ऐ युवा देश के जागो!


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