न अपनों को सताओ - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'

अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलात
तक़ती : 212  2121

न अपनों को सताओ,
क़सम से मान जाओ।

भले इक ख़्वाब बनकर,
कभी तो याद आओ।

कभी आकर अचानक,
अजी कुछ तो सुनाओ।

तुम्हीं ने तो कहा था,
मुहब्बत को निभाओ।

दिया था आपने ही,
वचन ख़ुद मत भुलाओ।

वही इक़रार दिल पर,
लिखा है मत मिटाओ।

प्यार का दीप 'अंचल',
सदा खिलकर जलाओ।


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