एक बार जो टूट गया तो - कविता - प्रवीन 'पथिक'

एक बार जो टूट गया तो,
शायद ही जुड़ पाएगा!
प्रेम या जीवन के सपनें,
हुए पराए जो थे अपने।
ऑंखें खोई हो आकाश में,
न उर पीड़ा मिट पाएगा।
एक बार जो टूट गया तो,
शायद ही जुड़ पाएगा!
अभी तो लक्ष्य,
दिखता स्पष्ट है।
समीप है मंज़िल,
नहीं दूरस्थ है 
साहस अभी बची हुई है;
उम्मीद भी नहीं खोई है;
हार यदि जो मान लिया,
हारा ख़ुद को जान लिया,
तो सब कुछ यूँ छूट जाएगा।
एक बार जो टूट गया तो,
शायद ही जुड़ पाएगा!


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