अरकान : फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
तक़ती : 2122 1122 1122 22
रोज़ इंसान का इंसान से झगड़ा होगा,
यह वही दौर है पुरखों ने जो सोचा होगा।
बदले-बदले हुए मौसम की अदा कहती है,
तुझको इस साल भी दहक़ान ख़सारा होगा।
इन खिलौनों से ग़रीबी की महक आई है,
उसने शायद किसी बच्चे से ख़रीदा होगा।
मिरी ख़ामोशी से तकलीफ़ बड़ी है उनको,
मेरी बातों से बहुत दर्द भी होता होगा।
ये ज़िन्दगी है 'क़लम' देख के सम्भल के ज़रा,
तुझको काँटे से नहीं फूल से ख़तरा होगा।
मोहसिन 'क़लम' - खंडवा (मध्यप्रदेश)