कोरा पन्ना - कविता - दिलीप सिंह यादव

मैं जब भी अपने दिल के
कोरे पन्ने पर तुम्हारा नाम लिखता हूँ
मेरी आँखों से आँसू निकलने के लिए
व्याकुल हो उठते हैं और मेरे मन की
वेदनाएँ मुझे मजबूर कर देती हैं
तुम्हारे लिए दो शब्द लिखने के लिए
और मैं तुम्हारे लिए दो चार पंक्तियाँ ही
लिख पाता हूँ कि लिखते-लिखते
वे शब्द ठीक उसी प्रकार बह जाते हैं 
जैसे वर्षा के दिनों में मुसलाधार बरसात
होने से बह जाती है धरती की
सतह पर जमीं हुई मिट्टी 
उसके बाद मैं जब होश संभालता हूँ
तो अपने आप फिर से उसी
कोरे पन्ने पर वापस लौट आता हूँ
और सोचने लगता हूँ
उन अनगिनत दिनों के बारे में
जो तुमने मेरे साथ बिताए थे
याद आती है तेरी वो प्यार भरी मुस्कान
जिसे देख तेरे होठों को छू लेने को
बेताब हो उठता था ये मन...
मैं तो तुमसे बेपनाह मोहब्बत करता था
करता हूँ और करता रहूँगा
मुझे तो ये पता भी नहीं कि तुम मुझसे
मोहब्बत भी करती हो या नहीं...!

दिलीप सिंह यादव - कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)

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