कुछ बातें
अंदर ही अंदर
ज्वालामुखी की तरह
उमस करती है
तोड़ धरा की परतें
बाहर निकलने को तत्पर रहती है
किंकर्तव्यविमूढ़
कहूँ या न कहूँ!
कुछ बातें
बिना सुने ही
झकझोर देती है
कविगत भाव
अमुक अंतः भाव
आहिस्ते से सुन लेती है
अब उस अमुक से
सुनूँ या न सुनूँ।
पर सभी बातें
चुपके से
मेरी कविता में उतर आती है।
संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)