हरि वन्दना - गीत - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

जय हो तुम्हारी हे माधव मुरारी,
जय हो सदा हे जग बलिहारी।
सुमिरन तुम्हारी करता सदा हूँ,
छाया में तुम्हारी रहता सदा हूँ।
कितनी महिमा तुम्हारी कहूँ मैं,
सेवा तुम्हारी करता रहूँ मैं।

लीला तुम्हारी है जग से न्यारी,
जय हो सदा हे जग बलिहारी।
जय हो तुम्हारी हे माधव मुरारी।

अवधपति हो तुम मेरे रघुवर,
करुणा के सागर हो मेरे प्रियवर।
शरण में अपनी मुझको तुम ले लो,
दास बना लो मुझपे कृपा कर।

मस्तक पर तेज़, धनु हाथ विराजे,
संग में लखन, सीता मैया विराजे।
सृष्टि तुम्हीं से है धनुधारी,
जय हो सदा हे जग बलिहारी।
जय हो तुम्हारी हे माधव मुरारी।

हारा हूँ जग से हे मेरे राघव,
कष्ट निवारो हे मेरे माधव।
पीड़ा मैं अपनी किससे बताऊँ,
गाथा तुम्हारी मैं सबको सुनाऊँ।

आया है शरण में आयुष, तुम्हारे,
करो बेड़ा पार हे चक्रधारी।
जय हो तुम्हारी हे माधव मुरारी,
जय हो सदा हे जग बलिहारी।

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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