पी गया वह पीर ताड़ी की तरह - ग़ज़ल - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'

अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2122  2122  212

पी गया वह पीर ताड़ी की तरह,
सकपकाया फिर अनाड़ी की तरह।

लोग उसकी बात कैसे मानते, 
जीभ चलती थी कुल्हाड़ी की तरह।

ज़िंदगी पर अब मुसीबत नित नई,
टूट पड़ती है पहाड़ी की तरह।

सिन्धियों सी कर ख़रीदी माल की,
बेच दे फिर मारवाड़ी की तरह।

एक बदली एक पागल के लिए,
सज रही थी एक लाड़ी की तरह।

जा रहा था दूर कछुए सा चला,
लौट आया रेलगाड़ी की तरह।

'प्राण' पंछी तो उड़ेगा डाल से,
लोग ढूँढ़ेंगे कबाड़ी की तरह।

गिरेंद्र सिंह भदौरिया 'प्राण' - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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