तुम्हारा कुछ सामान - कविता - ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना'

तुम्हारा कुछ सामान
मैंने पास रखा है,
ना माँगना वापस तुम
न लौटा पाऊँगी कभी।
कैसे लौटा सकती हूँ
वो मफलर जिसमें
आज भी तेरी
भीनी सी ख़ुशबू समाई है
जिसे लपेटकर आज भी 
तेरे पास होने का,
तेरे साथ होने का एहसास होता है।

ना लौटा पाऊँगी कभी
वो पहली कविता
जो लिखी थी तुमने
बारंबार पढ़ती हूँ मैं
जिसे पढ़ कर आज भी
तेरे पास होने का,
तेरे साथ होने का एहसास होता है।

क्या-क्या लौटाऊँ तुम्हें
वो चिढ़ाना-मनाना
या पीठ से पीठ टिकाए
तुम संग घंटों बतियाना
या प्यारी हँसी तेरी
जिसे याद कर
आज भी तेरे पास होने का,
तेरे साथ होने का एहसास होता है।

तुम ही कहो कैसे लौटाऊँ
तुम्हें वो सावन,
वो पूस की दोपहर, 
वो होली के रंग, 
वो सुबह की ओस, 
वो हर पल
जिसे फिर पल-पल जी कर
आज भी तेरे पास होने का,
तेरे साथ होने का एहसास होता है।

तुम्हारा कुछ सामान
मैंने पास रखा है,
ना माँगना वापस तुम
न लौटा पाऊँगी कभी।

ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना' - राउरकेला (ओड़िशा)

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