रावण वध - कविता - संजय राजभर 'समित'

मैं 
स्वयं रावण हूँ 
प्रति क्षण स्वयं से 
अंदर ही अंदर लड़ता हूँ, 
बाहर 
माया मोह का 
एक घना जंजाल है। 

बुद्ध 
महावीर 
कबीर 
स्वयं की चेतना को जागृत कर 
प्रकृति पढ़ लिए 
काटकर 
सारे भव बंधन 
एक असीम 
चिंतन-मनन की दुनिया में 
विलीन हो गएँ 
अचेतन ही रावण है 
चेतन की प्रक्रिया युद्ध है 
प्रकृति से परे होना 
रावण वध है। 

संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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