मिट्टी के दीए जलाना तुम,
ख़ुशियों का संसार सजाना तुम।
पर इतना तुमको सदा याद रहे,
किसी के आँसू मत बन जाना तुम।
उम्मीद सजा कर अपने मन में,
वो दिया बाज़ार में लाया है।
देखो कितना सुंदर पावन,
दीपों का पर्व ये आया है।
एक वर्ष की कठिन प्रतीक्षा,
तब जाकर ये दिन आया है।
दीप जला कर तिमिर मिटाओ,
ये जन जन में संदेशा पहुँचाया है।
अनूप अंबर - फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)