अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती : 1222 1222 1222 1222
यहाँ पहले कभी ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा,
कि मैंने आसमाँ देखा है पर छू कर नहीं देखा।
शिकायत ये नहीं मुझको कि उसने साथ छोड़ा है,
गिला इतना है उसने फिर कभी मुड़कर नहीं देखा।
मुसलसल चल रहा हूँ इस मसाफ़-ए-ज़िंदगी में मैं,
सफ़र में मुद्दतों से मील का पत्थर नहीं देखा।
ये ज़िम्मेदारियों ने इस क़दर से बाँध रक्खा है,
बहुत दिन हो गए है मैंने अपना घर नहीं देखा।
ज़रा सा तुम ठहर जाओ तो जी भर देख लूँ तुमको,
कि मैंने चाँद देखा है, मगर शब भर नहीं देखा।
आयुष सोनी - उमरिया (मध्यप्रदेश)