छात्र जीवन - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

ख़ुशियों की तलाश में
ख़ुशियाँ छोड़ आए हम,
कुछ करने की आस में
हर स्वाँस छोड़ आए हम।

दर्द कैसा है उर में
यह मैं कैसे बताऊँ,
घर बनाने की चाह में
घर छोड़ आए हम।

वो बचपन की यादें,
वो झिलमिल सी रातें,
वो माँ की ममता,
वो पिता की डाटें।
वो गाँवों की गलियाँ,
वो फूलों की कलियाँ।
उस मधुवन की ख़ुशबू का,
एहसास छोड़ आए हम।

दर्द कैसा है उर में
यह मैं कैसे बताऊँ,
घर बनाने की चाह में
घर छोड़ आए हम।

वो कॉलेज की यारी,
जो जग से भी न्यारी,
वो गुरुजी की डाँटें,
जो जीवन सँवारी।
वो चिट्ठी की बातें,
जो अकेले में गाते।
उस प्रियसी की प्रीति का,
अम्बार छोड़ आए हम।

दर्द कैसा है उर में
यह मैं कैसे बताऊँ,
घर बनाने की चाह में
घर छोड़ आए हम।

रह गई यादें गाँव की, गाँव में,
आ गए एक बड़े नगर में हम,
मंज़िल को पाने की चाह में
चल पड़े एक कठिन डगर पे हम।
हर क़दम पे परख रही ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी केे हर अमन को छोड़ आए हम।

दर्द कैसा है उर में
यह मैं कैसे बताऊँ,
घर बनाने की चाह में
घर छोड़ आए हम।

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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