ओ राधा रानी तेरा श्याम तके तेरी राह,
तू आजा उन्हीं गलियों में।
मैं कदम्ब की डाल पे बैठा
मुरली मधुर बजाऊँगा,
तेरे नाम की माला लेकर
पल-पल जपता जाऊँगा।
तू जब से रूठी है राधे सुधबुध मैं भी खो बैठा,
आ जा कर लूँ तुझे दुलार सजा के इन कलियों में।
ओ राधा रानी तेरा श्याम तके तेरी राह
तू आजा उन्हीं गलियों में।
तेरे कोमल पैरों में मैं
पायलिया पहनाऊँगा,
केश तेरे उलझे-उलझे जो
मैं उनको सुलझाऊँगा।
जब से छोड़ गई तू राहें ये वृंदावन सूना-सूना,
तुझ बिन सूना है संसार तू आजा उन्हीं गलियों में।
ओ राधा रानी तेरा श्याम तके तेरी राह,
तू आजा उन्हीं गलियों में।
नरम-नरम तेरे हाथों में
मेहँदी मधुर लगाऊँगा,
रास रचा कर संग में तेरे
झूला तुझे झुलाऊँगा।
तूने जब से मुह फेरा ये वन उपवन सब सूने हैं,
तुझ बिन गउवैं हुईं उदास तू आ जा उन्हीं गलियों में।
ओ राधा रानी तेरा श्याम तके तेरी राह,
तू आजा उन्हीं गलियों में।
डॉ॰ मान सिंह - जनपद, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)