राम दरबार - कविता - गायत्री शर्मा 'गुंजन'

द्वादश गृह है जन्म कुंडली स्थिर हैं लग्नेश,
कुछ दलबदलू गोचर ग्रह अतिथिगण बन करें प्रवेश।

आज उपाय एक करना है दूजा कल पर टाल,
ऐसे ही भय ग्रहों से खाकर होता है बुरा हाल।

शनि मनाऊँ मंगल रूठे, किसके आगे किसको पूजे,
पीपल पूजूँ शम्मी को पुजूँ अब तो चंदा मामा रूठें।

कुंडली माहीं खोट यद्यपि ग्रहों की मिश्रित चाल,
एक दूजे को देख के जलते, करते है वाचाल।

साढ़े साती ख़ौफ़ है भारी शनि हैं शिव के दास,
चंदा पर जब शनि कुपित हों मन को करें उदास।

चंदा जी शिव के प्यारे हैं आभूषण बन सजे जटा,
शिव के अनन्य भक्ति से सुधरे चाल ग्रहों का उल्टा।

राहु केतु छाया बनकर देव ग्रहों को ग्रहण लगाए,
बिना मौत अकाल ही मृत्यु किसके कारण आए।

मंगल दोष अति घातक या नियति का है हाथ,
टारो विपदा दोष कटे अब हे हनुमंत दो साथ।

कौन है किससे सर्वोपरि राम हैं किसके आराध्य,
हनुमान शिव शम्भू करते हर पल किसका ध्यान।

प्रभु राम को हृदय में ध्याओ यही जगत का सार,
ग्रहों के मनके, यंत्र-तंत्र का तनिक नहीं आसार।

राम, रुद्र, हनुमंत हृदय धर 'गुंजन' करे पुकार,
छोड़-छाड़ि जग उलझन सारी पूजे राम दरबार।।

गायत्री शर्मा 'गुंजन' - दिल्ली

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