तीर तरकश कमान बाक़ी है - ग़ज़ल - अरशद रसूल

अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तकती : 2122  1212  22/112

तीर तरकश कमान बाक़ी है,
हौसलों में उड़ान बाक़ी है।

जिस्म में थोड़ी' जान बाक़ी है,
आख़िरी इम्तहान बाक़ी है।

इश्क़ की हार कोइ हार नहीं,
जीतने को जहान बाक़ी है।

ख़ौफ़ खाती है' प्यास पानी से,
बाढ़ का हर निशान बाक़ी है।

गर्म बिस्तर के हम कहाँ आदी,
ओढ़ने को थकान बाक़ी है।

छोड़कर गाँव बच सकी है जान,
उस नदी का कटान बाक़ी है।

फेल दुनिया में हम कभी न हुए,
घर में इक इम्तिहान बाक़ी है।

एक हो जाएँगे कभी हम भी,
कुंडली का मिलान बाक़ी है।

खेत सारे वफ़ा के सूख चुके,
आशिक़ी का लगान बाक़ी है।

अरशद रसूल - बदायूं (उत्तर प्रदेश)

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