मैं बेख़ौफ़ उड़ानों का शौक़ रखता हूँ - कविता - राकेश कुशवाहा राही

मैं बेख़ौफ़ उड़ानों का शौक़ रखता हूँ, 
पंख नहीं हौसलों की रफ़्तार रखता हूँ,
मंज़िलों पर पल दो पल बसेरा है मेरा,
नित नई मंज़िलों की तलाश करता हूँ।

दीपक ही सही हर शाम जलता तो हूँ,
कम ही सही थोड़ी रौशनी करता तो हूँ,
बहुत से घरौंदे अँधेरे में जीवित होते है,
उन घरौंदों की देहरी पर चमकता तो हूँ।

फ़क़ीरों सा जीवन का मलाल कुछ नहीं,
बहुत लोगो के पास जीवन में कुछ नहीं,
प्रकृति भी देती है ज्ञान का अनुभव हमें,
बिना बरसे बादलों का महत्व कुछ नहीं। 

कर्मों से ही सुख-दुःख का भाव होता है,
अकर्म से ही ज़िंदगी में अभाव होता है,
आभार है अपनी असफलताओं का मुझे,
जिससे त्रुटि परिमार्जन का ज्ञान होता है। 

राकेश कुशवाहा राही - ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)

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