गुरु ही पूर्ण वंदना - कविता - राघवेंद्र सिंह

प्रशस्त पुण्य पंथ पर,
अखण्ड दीप जल रहा।
है ज्ञान ज्योति बन गुरु,
वह विश्व को बदल रहा।

है शांति का प्रतीक भी,
वह शिष्य की उड़ान है।
है सिंधु की असीमता,
वह सत्य का बखान है।

है जीत की प्रवेशिका,
गुरु यहाँ पवित्र है।
असँख्य शिष्य तार दे,
गुरु ही ऐसा इत्र है।

गुरु यहाँ है धैर्यता,
गुरु यहाँ है संस्कृति।
गुरु यहाँ है प्रेम की,
प्रकाशमय वह एक कृति।

गुरु कुरान आयतें,
है गीता का ही सार वह।
गुरु ही वाणी प्रेम की,
गुरु ही ज्ञानाधार वह।

गुरु अनंत व्योम है,
गुरु ही माँझी नाव का।
गुरु ही घट है ज्ञान का,
गुरु शिखर प्रभाव का।

गुरु ही मार्तंड है,
गुरु ही नव प्रभात है।
गुरु ही साथ दे सके,
वो ऐसी छाया साथ है।

गुरु ही ब्रह्मा विष्णु है,
गुरु ही पूर्ण वंदना।
जिसे मिली है रज चरण,
वो ज्ञान का कलश बना।

राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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