गुरु वंदना - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

गुरु ही जीवन की माला है,
इनके चरण पद्म का वंदन।

याद आ रही बार-बार है,
जिसने मुझे पढ़ाया था।
मृदुल हाथ से थपकी देकर,
जिसने मुझे जगाया था।
सीख मुझे दे झंझा पथ में,
चलना मुझे सिखाया था।

सुख-दु:ख की पहचान कराई
और चला पथ बढ़ता स्यन्दन।

मृत्तिका जैविक ज्योति बन गई,
बढ़ते रहे क़दम आगे।
आँखों ने देखा सारा जग,
जैसे स्वप्निल तन जागे।
गुरु के अनुष्ठान से सारे,
दुर्गुण अंर्तमन के भागे।

हम असमर्थ रहे कितने पर,
धन्य बना दी काया चंदन।

भव सागर में नाव चलाता,
वहीं शक्ति अनुपम मेरी।
बढ़ता हूँ मैं चीर अंध को,
लगती नहीं मुझे देरी।
गुरु ही ईश्वर सम मेरे हैं,
हृदय लगाते हैं फेरी।

दीप जला कर अगर पुहुप से,
करता हूँ शतश: अभिनंदन।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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