अभिषेक मिश्रा - बहराइच (उत्तर प्रदेश)
होली - लोकगीत - अभिषेक मिश्रा
शुक्रवार, मार्च 18, 2022
सजनवा आ रे अपने गाँव कि होली आने वाली है,
बुलाता है बरगद का छाँव कि होली आने वाली है,
आने वाली है कि होली आने वाली है।
सजनवा आ...
मन्द-मन्द ये जियरा डोले, कू-कू कोयल गाती है,
रंगो की पिचकारी मुझको तेरी याद दिलाती है 2
नई-नई कोमल कलियाँ और
फागुन बहे बयार कि होली आने वाली है,
आने वाली है कि होली आने वाली है।
सजनवा आ...
लाल रंग की चूनर, साड़ी मैंने धानी मंगाई है
गुझिया, पापड़ और मिठाई हमने बहुत बनाई हैं 2
व्यर्थ मेरा ये फाग न जाए,
जम के करूँ शृंगार कि होली आने वाली है,
आने वाली है कि होली आने वाली है।
सजनवा आ...
ढूँढ़ रही हैं कबसे तुझको मेरी ये प्यासी अँखियाँ,
चन्दा भी अब आँख दिखाए छेड़े हैं मेरी सखियाँ 2
राग द्वेष सब तज के आजा,
मनवा करे गुहार कि होली आने वाली है,
आने वाली है कि होली आने वाली है।
सजनवा आ...
प्रेम का एक रंग मोहे लगाना, एक पिया अरदास,
रहे अटूट ये रिश्ता मेरा एक रंग विश्वास 2
फीका कभी न पड़ने देना रंगो का त्योहार,
कि होली आने वाली है आने वाली है कि होली आने वाली है।
सजनवा आ...
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