चल हँसते है किसी बात पर - कविता - अनिल कुमार

चल हँसते है किसी बात पर
बेबात पर ख़ुशी मनाते है,
मंज़िल को छोड़-छाड़कर
रस्तों में ही कहीं खो जाते है।
चल हँसते है किसी बात पर
बेबात की बातें बनाते है,
न घर से कहीं जाने का डर
न घर लौट आने की जल्दी,
बेफ़िक्री में ऐसी सीटी बजाते है।
चल हँसते है किसी बात पर
फ़ुर्सत में बैठे बाते उड़ाते है,
जीवन की चिंताओं से दूर
कुछ बेपरवाही में ढूबे
मस्ती में खोकर मौज मनाते है।
चल भागदौड़ को छोड़ यहीं
फिर से बच्चे बन शोर मचाते है,
ज़रूरतों की थैली फेक कहीं
बेमतलब गलियों में दौड़ लगाते है।
चल हँसते है किसी बात पर
फिर से बचपन वाली नादानी ले
बच्चे बनकर मस्ती में खो जाते है,
चल हँसते है किसी बात पर
बेबात पर ख़ुशी मनाते है।

अनिल कुमार - बून्दी (राजस्थान)

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