संघर्ष और विश्वास - कविता - सिद्धार्थ 'सोहम'

माना की संघर्ष बड़ा है, युध्द भी सर पे आन खड़ा है, 
घनघोर प्रलय की तस्वीरें भी, दूर कहीं से दिख रही है,
और कहीं प्रतिरोध की बदली, शायद भीतर पल रही है। 

मानव की ये आशंका, निज ख़ुद जन जाल में पड़ता है, 
विश्वास स्वयं पर हो जितना भी, पर असमंजस में रहता है,
अज्ञान विमुख परिवेश को बदले, ऐसा कभी कहाँ होता है, 
जो कर न सके विश्वास स्वयं पर, ऐसा कोई सफल होता है।

जान लगा दो या जाने दो, 
ये मूलमंत्र हो जीवन का, 
हर अँधकार को काट सके, 
ऐसा हो दिया अंतरमन का, 

जीवन के विश्वास को खोकर, संघर्षो से कोई लड़ा है, 
मानो तो ये कर्म लड़ा है, मानो तो संघर्ष बड़ा है।।

सिद्धार्थ 'सोहम' - उन्नाओ (उत्तर प्रदेश)

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