एक जंगल मे शेर ने, अपने बेटे का बर्थडे मनाया,
पूरे जंगल वासियों को, भेज न्योता बुलवाया,
गीदड़ आए, भालू आए, आए बन्दर मामा,
साथ सभी के बच्चे आए, ख़ूब किया हंगामा,
पार्टी में सबने खाए, पकवान लज़्ज़त वाले,
उनको भी मिला आज, जिनके खाने के थे लाले,
बच्चे इतने ख़ुश थे, देख चकाचौंध माहौल,
ख़ुशियाँ उनकी ऐसी थी, कि न नापे न तौल,
जिनको जो बन पड़ा, दिया छोटे राजा को भेंट,
आते-आते घर पर, सब हो गए काफ़ी लेट,
कल हो कर जब सब, बच्चे पहुँचे खेल मैदान,
आपस मे छिड़ गई बहस, शुरू हुई घमासान,
एक ने दूसरे से कहा, हम भी बर्थडे मनाएँगे
राजा से भी बेहतर, आयोजन कर दिखलाएँगे,
तभी बुलाने आ गए, उनके अभिभावक मैदान पर,
सुन कर उनकी बहस, लगे समझाने उसी स्थान पर,
कहा कि बेटा ये सब, हम कहाँ से कर पाएँगे,
जो मनाएँगे यूँ उत्सव, तो पेट कैसे भर पाएँगे।
वो राजा हैं, वो जो चाहे, सो कर सकते हैं,
उनके बच्चे कैम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड में पढ़ सकते हैं,
वो चाहे तो सालों भर, अपने बच्चों का बर्थडे मनाएँगे,
हम जैसों को फेंक निवाले, जीवन भर खिलवाएँगे।
काम हमारा पालन करना, है उनके आदेश को,
मेरे बच्चों जीवन भर, तुम याद रखना इस संदेश को।
सैयद इंतज़ार अहमद - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)