रात - कविता - निकिता मिश्रा

ख़्वाब सितारे चाँद
क्या बस यही है रात की पहचान।
वो आतप का इंतज़ार
वो रातरानी का आना
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
वो चिराग़ का जलना
वो साए का छोड़ना
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
ख़्वाब सितारे चाँद
क्या बस यही है रात की पहचान।

कवि के लिए वो एकांत
वो प्रकृति से बात
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
वो हवा को छूना 
वो पेड़ो की सरसराहट
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
वो जल की स्वच्छ नीलिमा में
वो चंद्रमा का हिलोरना
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
ख़्वाब सितारे चाँद
क्या बस यही है रात की पहचान।

वो नदी तट का शांत हो जाना
वो वातावरण का शीतल हो जाना
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
वो ताजमहल में चार चाँद लग जाना
वो इमारत का जगमग हो जाना
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
वो शरद पूर्णिमा की रात में
वो चाँद की किरणों का अमृत बरसाना
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
ख़्वाब सितारे चाँद
क्या बस यही है रात की पहचान।

वो प्यार का परवान
वो अपने का साथ
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
वो चंद्रमा का मामा हो जाना
वो तारो का गिनना
क्या ये नहीं है रात की पहचान।
वो बढ़ती चाँदनी 
वो मिलन कि प्यास
क्या ये नहीं है रात की पहचान
ख़्वाब सितारे चाँद
क्या बस यही है रात की पहचान।

निकिता मिश्रा - वाराणसी (उतर प्रदेश)

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