हाँक दिए जाते हो
ढोर डंगरो की तरह
एक ही लाठी से
लाठी पर राजनीति का रंग लगा
हमको बहलाकर कराते दंगा।
धर्म और सांप्रदायिकता
का नशा देकर
उनके भोलेपन का
फ़ायदा लेकर
अंधविश्वास की पट्टियाँ
आँखों पर चढ़ा कर
भाई को भाई से लड़ाकर
राजनीति की रोटी खिलाकर
तर्क हीनता के बीज बोकर
नफ़रत की फ़सल उगाकर
मरहम की पट्टी लगाकर
बनाते मानसिक रोगी
इसलिए चुप्पी तोड़नी होगी।
आना होगा वापस
मानवता की ओर
अपने अस्तित्व के लिए
मचाना होगा शोर
बचना होगा इन चरागाहो से
तेरा भला होगा मनुष्यता की राहों से
इनके बंधनों से मुक्ति करनी होगी
इसलिए चुप्पी तोड़नी होगी।
इनकी हर साज़िश की
दीवार को तोड़ना होगा
अस्मिता के लिए
खड़ा होना होगा
चुप्पी से चीख़ उत्पन्न
कर जीत होगी
इसलिए चुप्पी तोड़नी होगी।
समय सिंह जौल - दिल्ली