हँसी के पीछे का शोर - कविता - मोहित कुमार पांडे

उसने कहा 
चलो तुम कहते हो तो
हँस देती हूँ।

गौर से देखोगे तो
पाओगे की
हँसी के पीछे का शोर
कचोटता बहुत है।

ओह! हँसी के पीछे का शोर
तू सच में कचोटता है बहुत।

एक स्त्री होने का दुख
तो स्त्री ही समझ सकती है।

उसे सिवाय संबल देने के
मैं क्या कह सकता था,
जब और लोग लगे थे तोड़ने में
उसका मनोबल।

एक लड़की कैसे इतना मुखर होकर
सामाजिक कुरीतियों के ख़िलाफ़
संघर्ष कर रही है 
लिख रही लगातार।

मैंने उससे कहा
एक शेरनी सरीखा साहस
उसकी दहाड़ भी तो है
तुम्हारे पास
उसके आगे शोर बहुत
मद्धिम पड़ता गया।

बच गई थी मुस्कुराहट
सफलता की
जज़्बा ज़माने में
कुछ कर दिखाने का
हौसला बिना पंखों के भी
उड़ जाने का।

वह कह रही थी
मिलों चलना है उसे अभी
मैंने कहा
मुस्कुराहट ही तुम्हारी ताक़त है दोस्त
इसे बचाए रखना!

मोहित कुमार पांडे - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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