मन को सुहाती धूप सुहानी,
देखो आई बसंत की ऋतु मस्तानी।
नीरस से जीवन में भी नवतरंग उमंग ले आई है,
पीली सरसों ऐसी लगती जैसे मानो प्रकृति ने कालीन बिछाई है।
बागों में मंजरियों पे भँवरे करते हैं गुंजन,
खिल उठा सारा चमन महक उठे सुंदर सुमन।
वसुंधरा ने शृंगार किया ओढ़कर पीली धानी चुनर,
मनमयूर नाचन उठे चहुँओर बन गया इक सुंदर मधुबन।
आ गई मधुरिम ऋतु बसंत,
ले लेकर नई बहार नए रंग।
कोयल मैना भी बन गए मीत,
बागों में चिड़ियों का कलरव लगे संगीत।
पतझड़ बीता बहार आई,
कण-कण में नई उमंग छाई।
नवलता भी देखो कैसे वन उपवन सजाने आई,
कुसुम कली में मनोहारी वो सुगंध आई।
रूठे हुए साजन से मिलने मानो सजनी है आई,
प्रकृति का शृंगार करने देखो बसंत ऋतु है आई।
अतुल पाठक 'धैर्य' - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)