चुराई गई नैनों से प्यारी सी निंदिया - गीत - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'

देखि-देखि तोहरे माथे की बिंदिया।
चुराई गई नैनों से प्यारी सी निंदिया।।
रूप तेरा दिल की है धड़कन बढ़ौले।
बिना डोर मझबा पतंगे उढ़ौले।।
उठे-उठे गलवा है मंद मुष्कनिया।
ग़ज़ब ढाए दिलवा पे मोरी सजनिया।।
सैरवा करौले तोहि अगले महिनवा।
राम की नगरिया अयोध्या अगनवा।।
कनक के भवनवा बजौले पयलिया।
चुराय गई नैनों से प्यारी सी निंदिया।।

जैसेहि उतरिबा अयोध्या शहर मा।
सुनाय पड़ी राम ध्वनि ग़ज़ल बहर मा।।
बैठि केरि टुक-टुक घटवा पे जौले।
मलि-मलि के देहिया सरयू नहौले।।
नियर-नियर हम तुम बोटवा मा बैठब।
प्यारे-प्यारे हथवा से कनवा का ऐठब।।
हथवा रचाईब तोरे लाली मेहदिया।
चुराय गई नैनों से प्यारी सी निंदिया।।

मोरे मन ही मन रसगुल्ला है फूटै।
देखि बीच धरवा पसिनवा है छूटे।।
मन ही मन श्री राम जी से काहिली।
भटके मुसाफ़िर है पैरन मा राहिली।।
खुली आँख हमरी तख़्तवा पे पायेन।
बेधड़क समंदर मा दुबकी लगायेन।।
बीत गईंली ऐसे हमार सारी रतिया।
चुराई गई नैनों से प्यारी सी निंदिया।।

भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos