ज़िंदगी के छूटने से डरता हूँ - कविता - केवल जीत सिंह

ताउम्र पीता रहा हूँ
ज़िंदगी जीने का मीठा ज़हर
अब ज़िंदगी के छूटने से
डरता हूँ। 
ज़िंदगी जीने की उमर क़ैद
काट रहा हूँ, जैसे-जैसे
रिहा होने की तारीख़
नज़दीक आ रही है
अब ज़िंदगी की रिहाई
से डरता हूँ। 
इस जहाँ में रहने का आदी
हो गया हूँ, हर तरह के
हालातों में
अब इस जहाँ के छूटने से
डरता हूँ। 
ज़िंदगी के छूटने से डरता हूँ।

केवल जीत सिंह - मोहाली (पंजाब)

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