जनता का तंत्र गणतंत्र - कविता - कवि दीपक झा 'राज'

जनता का जो तंत्र है,
वही गणतंत्र है।
भेदभाव की जगह नहीं अब,
वंशवाद की लहर नहीं अब,
जनता ही अब मालिक है,
जनता ही सरकार है।
जनता का जो तंत्र है,
वही गणतंत्र है।

राजाओं का राज नहीं अब,
प्रजा भी स्वतंत्र है।
संविधान का निर्माण हुआ अब,
तानाशाही का अंत है।
जनता का जो तंत्र है,
वही गणतंत्र है।

अपनी ताक़त को तुम पहचानो,
यह वोट नहीं एक मंत्र है।
जिसे चाहो विराजित कर दो,
जनता अब स्वतंत्र है।
जनता का जो तंत्र है,
वही गणतंत्र है।

कवि दीपक झा 'राज' - बेगूसराय (बिहार)

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