ज़िंदगी - कविता - डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी

सहमी ठहरी
रुकी सी ज़िंदगी
नहीं वह ज़िंदगी
वह तो बहती हर पल 
कल-कल 
जलधारा
जलप्रपात
वर्षा की फुहार
गीत संगीत या
कलरव पक्षी समूह का
कबूतर की गुंटुर-गूं गुंटुर-गूं
कोयल की कू-कू
या वाणी बुलबुल की।

डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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