मैं धरा हूँ - कविता - सीमा वर्णिका

बाहों में सृष्टि घिरी
सरित सिंधु व गिरि
शेषनाग शीर्ष धरी
मैं धरा हूँ।

सौरमंडल का ग्रह 
वारि भू मय विग्रह 
द्वय ध्रुव हिम संग्रह 
मैं धरा हूँ।

खेत वन व उद्यान में 
निर्झर व जलवान में 
तृण विरवा विवान में 
मैं धरा हूँ।

जीव जन्तु व प्राणी 
विविध भाषा वाणी 
भिन्न ऋतु कल्याणी
मैं धरा हूँ।

दृश भूगर्भीय साक्ष्य 
जैव विविधता नाट्य
प्रजातियों का प्राप्य  
मैं धरा हूँ।

चाँद व सूरज निहारे
नयनों के समक्ष तारे 
ग्रह उपग्रह संग सारे 
मैं धरा हूँ।

विकट तपिश की मार 
ज्वार भाटा का प्रहार 
बारिश हो मूसलाधार 
मैं धरा हूँ।

संत ऋषि व मुनियों की 
श्रमी कृषक गुनियों की
बाल वृद्ध नर नारियों की
मैं धरा हूँ।।

सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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