माँ की दुआ का सागर - कविता - बीरेंद्र सिंह अठवाल

माँ तू कहे तो मैं काँटों से गुज़र जाऊँ,
माँ तेरे सामने अपनी नज़र झुकाऊँ।
माँ इस दुनिया में कोई तेरे जैसा नहीं,
माँ तेरी दुआ के आगे चले पैसा नहीं।
माँ तेरी एक आवाज़ में बिखर जाऊँ,
माँ तू कहे तो मैं काँटों से गुज़र जाऊँ।

माँ तुझ से है मेरी बस यही गुज़ारिश,
हो जाए बस तेरी दुआओं की बारिश।
तेरे चरणों की धूल मिल जाए मुझको,
तेरी दुआ का फूल खिल जाए अब तो।
बुढ़ापे में तेरी लाठी, नज़र बन जाऊँ।।

माँ तेरी दुआएँ धो देती हैं सारे गुनाह,
माँ तेरी दुआओं में बस नज़ारे पनाह।
दुआ के बिन जीवन के सितारे तन्हा,
माँ दौड़कर आऊँगा मैं तू पुकारे जहाँ।
माँ तेरी आहट सुनके हाजिर हो जाऊँ।।

तेरी दुआ भर देती है गहरे ज़ख़्मों को,
जन्नत बन जाए जहाँ रखे क़दमों को।
माँ तेरी दुआएँ भुला देती हैं सदमों को,
बंदा जीत ले मुश्किल के मुक़दमों को।
मन की ममता में डूबकर निखर जाऊँ।।

दुआ मुसीबतों को बना देती है राख,
दुआ से अनहोनी टल जाती है लाख।
मैली न हो तेरे रहमों कर्मों की चादर,
ख़त्म न होगा तेरी दुआओं का सागर।
तेरा ही नाम रटता रहूँ जिधर मैं आऊँ।।

कभी होने न दूँगा माँ तुझको नाराज़,
माँ तुझपे क़ुर्बान ये तख़्त और ताज।
भीड़ पड़ी में हमारी सुन लेना आवाज़,
सारी दुनिया से निराला तेरा अंदाज़।
तेरी दुआओं की लपट से निखर जाऊँ।।

बिरेन्द्र सिंह अठवाल - जींद (हरियाणा)

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