उड़ जा पंख पसार रे - कविता - आर्यपुत्र आर्यन जी महाराज

ओ सोच रहा क्या बैठा परिन्दे उड़ जा पंख पसार रे,
बन सकता जब विश्व विजेता क्यों? बैठा मन मार रे।

जोशीले पौरुष को हरा दे सिंकदर की औक़ात नहीं,
कूद पड़ो मैदान-ए-जंग मे चिंता की कोई बात नहीं।
चन्द्र किरण को रोक सके ऐसी कोई रात नहीं।
शूरवीर को बाँध सकी हिजड़ों की कभी जमात नहीं।

किस लाचारी में बैठा तू? है तुझको धिक्कार रे।
बन सकता जब विश्व विजेता क्यों? बैठा मन मार रे।।

हँसते हैं जो हँसने दो तुम उन्हें मज़ाक बनाने दो,
खटक रहा जो दिल दिमाग़ मे भूल जा उनको जाने दो।
जो दुश्मन बनकर बैठा उसको दुश्मनी निभाने दो,
दुनिया का है काम यही बस उन्हें मज़ाक उड़ाने दो।

इससे मत घबराओ साथियों यही जगत व्यवहार रे।
बन सकता जब विश्व विजेता क्यों? बैठा मन मार रे।।

होना चाहो सफल अमल इन बातों पर कर लेना तुम,
रखो लक्ष्य पर ध्यान बेवजह लोगों पर मत देना तुम।
जोश जुनून जंग की इच्छा दृढ़ निश्चय भर लेना तुम,
बन जाओगे विश्व विजेता क़दम-क़दम बढ़ लेना तुम।

'आर्यन' ये बल बुद्धि जोश हर विजय का है हथियार रे।
बन सकता जब विश्व विजेता क्यों? बैठा मन मार रे।।

आर्यपुत्र आर्यन जी महाराज - औरैया (उत्तर प्रदेश)

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