सफ़र - कविता - दीपक राही

यह सफ़र है तुम्हारा,
लड़-खडाते हुए क़दमों से 
चल सको तो चलो।
सफ़र में धूप तो होगी, 
फिर भी चल सको तो चलो।
सभी हैं भीड़ में तुम भी,
निकल सको तो चलो।
किसी को कोई
रास्ता नहीं देता,
मुझे गिरा कर अगर तुम 
संभल सको तो चलो।
यही है ज़िंदगी
सर उठाकर
चल सको तो चलो।
अँधेरी रात में, 
चाँद की रोशनी बन,
चल सको तो चलो।
यह सफ़र हैं तुम्हारा
विपरीत स्थितियों को समझ, 
चल सको तो चलो।
बेहतर कल की तलाश में,
ख़ुद को निशावर कर,
चल सको तो चलो।

दीपक राही - जम्मू कश्मीर

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