अरकान : मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 1212 1122 1212 22
हर एक शख़्स ही तन्हा दिखाई देता है,
कभी डरा कभी सहमा दिखाई देता है।
यही ख़याल ही महका दिखाई देता है,
हर एक शख़्स ही अपना दिखाई देता है।
बहुत दिनों से जो रस्ता दिखा रहा था मुझे,
वो आज राह से भटका दिखाई देता है।
ज़रूर आज कहीं आसपास ही हो तुम,
हर एक गुंचा चटखता दिखाई देता है।
बिछुड़ के तुझसे मुहब्बत हुई हर एक शै से।
हर एक सू तेरा चेहरा दिखाई देता है।
बदल गए हैं क्या हालात चार दिन के लिए,
अब इस ज़माने में क्या क्या दिखाई देता है।
जदीद दौर का हर शख़्स अपनी मस्ती में,
क़दम-क़दम पे ही बहका दिखाई देता है।
तेरी तलाश में हमदम मुझे वजूद अपना,
हर एक सिम्त बिखरता दिखाई देता है
नज़र से दूर है लेकिन 'नितान्त' जाने क्यों,
वो मुझको साथ ही चलता दिखाई देता है।
समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)